पीरियड आना एक सामान्य बात है और पहले पीरियड आपके बड़ा होने की इस खूबसूरत सफर की शुरुआत है। भले ही मेंस्ट्रुअल साइकिल (माहवारी) की शुरुआत किसी भी लड़की की ज़िंदगी का सबसे महत्वपूर्ण समय हो, हम में से कितनी लड़कियाँ पहले पीरियड के अपने समय में विश्वास से भरी हुई और निडर रहीं होंगी? हम में से ज़्यादातर लड़कियाँ अपने पहले पीरियड के समय या तो अचरज में थीं या फिर हमें पीरियड के बारे में बहुत थोड़ी जानकारी थी और पहला पीरियड आने से पहले इसका क्या मतलब होता है यह भी नहीं पता था। इसलिए यह बहुत ज़रूरी हो गया है कि हम अपनी बेटियों को पीरियड पर एक सकारात्मक सोच दें और उन्हें उस पर गर्व करना सीखाएं ना कि उस से शर्माना।
आपको अपने बच्चों से पीरियड के बारे मे बात क्यों करनी चाहिए?
ज़्यादातर लड़कियों में उनके पहले पीरियड 6वीं या 7वीं कक्षा में आते हैं। चूँकि वह किशोरावस्था को पार कर रही होती हैं और उनके शरीर में कई तरह के बदलाव भी होते हैं इसलिए यह वक़्त उनके लिए बड़ा ही घबराहट भरा होता है। ज़्यादातर बच्चे माहवारी के बारे में और उससे जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात अपने हम उम्र लोगों से जानते हैं, जो कि ज़ाहिर है एक सही या भरोसेमंद व्यक्ति नहीं है।
स्कूल में भी इससे जुड़े बायोलॉजी के पाठ काफी देर से - लगभग 8वीं या 9वीं क्लास में आते हैं, जिसका मतलब है लगभग 81% लड़कियों को जब पहली बार पीरियड आता है तो उन्हें इस बात का अंदाजा ही नहीं होता है कि ये सब क्या हो रहा है। इसलिए प्यूबर्टी और पीरियड पर माँ अगर पहले से बात करे तो इससे ना सिर्फ उनके मन की सारी शंकाएँ दूर होंगी बल्कि इससे पीरियड को लेकर उनके मन में जो डर बैठा होता है वो भी पूरी तरह से हट जाएगा।
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मुझे पीरियड के बारे में कब बात करनी चाहिए?
लड़कियों के साथ ऐसा बहुत कम होता है कि जब उनके पहले पीरियड आएं और माँ उनके आसपास मौजूद हो। सोचिए अगर आपकी बेटी स्कूल में हो या कहीं और बाहर हो और अचानक से उसे वजाइना से खून आता दिखे और उसे उसके बारे में कुछ भी पता ना हो। ऐसे समय में मदद के लिए आसपास कोई ना हो ऐसा ख्याल भी उसके और आपके दोनों ही के लिए बहुत डरावना होगा। इसलिए पीरियड पर पहले से बात करना बहुत ज़रूरी है।
जब आप यह देखें कि आपकी बच्ची मूड़ स्विंग्स की वजह से बहुत चिड़चिड़ी हो रही है या बात-बात पर रो रही है, ज़्यादा लंबे समय के लिए सो रही है, या फिर प्यूबिक हेयर आने के साथ-साथ उसके स्तनों में उभार आए या उनमें दर्द हो रहा हो तो समझ जाइए की उसकी प्यूबर्टी शुरू हो चुकी है। आपको उसकी पेंटी में एक सफ़ेद या रंगहीन डिस्चार्ज देखने को मिल सकता है जिसका मतलब है कि उसकी मेंस्ट्रुअल साइकिल जल्दी ही शुरू होने वाली है। आम तौर पर मिनार्की या पहला पीरियड, इस सफ़ेद या रंगहीन डिस्चार्ज के निकलने के 3 से 12 महीनों के अंदर शुरू होता है। इसलिए, यह समय सबसे सही है, जब आप पीरियड पर अपनी बातचीत शुरू कर सकती हैं। उसके 8 से 9 साल के होने के बाद ये कभी भी हो सकता है।
इस बातचीत में मददगार कुछ तथ्य
मेंस्ट्रुअल साइकिल एक लंबी और पेचीदा प्रक्रिया है जिसे एक बार की बातचीत में समझना आसान नहीं होता है। उनके शरीर में जो बदलाव आ रहे हैं उसके लिए कैसे तैयार होना है ये समझना थोड़ा मुश्किल है। इस पर बात शुरू करने के लिए किसी “सही” समय का इंतज़ार ना करें। आपकी बच्ची एक बार में शायद सब कुछ ना समझ सके। इसलिए इस तरह के टॉपिक समय-समय पर अपनी बातचीत के दौरान लाते रहें ताकि वे उसे धीरे-धीरे समझ सकें। पीरियड की बातों को समान्य रूप से लेना ज़रूरी है ताकि बच्चे यह समझ सकें कि यह एक नियमित जैविक प्रक्रिया है जो बड़ा होने में मदद करती है।
आप उनसे अपने पहले पीरियड के अनुभव साझा कर सकती हैं या उन्हें अपने पीरियड के दिनों से जुड़ी बातों का हिस्सा बनाएं। जब आप अपने लिए सेनेटरी नैपकिन खरीदने जाएँ तो उसे भी अपने साथ ले जाएँ और ये बताएं कि इसमें शर्माने वाली कोई बात नहीं है। उन्हें यह बात सीखाएं कि सेनेटरी पैड खरीदना, किराने का सामान खरीदने जितना ही आम है और इसे छुपके करने की कोई ज़रूरत नहीं है।
अपनी बच्ची को यह बताएं कि जो भी बदलाव वह अनुभव कर रही है है वो एकदम समान्य है और प्यूबर्टीका एक हिस्सा है। माहवारी के समय होने वाले लक्षण जो उन्हें भी हो सकते है जैसे - पीरियड में होने वाले दर्द, पेट दर्द और कमर दर्द, मुहांसें, स्तनों में दर्द, मूड़ स्विंग्स और आलस होना आदि, के बारे में उन्हें बताएं। उन्हें बताइये कि हल्की कसरत पीरियड के दिनों के दौरान दर्द को कम करने में मदद करती है, और अगर आप कसरत नहीं कर पा रही हैं, तो उसमें भी कोई परेशानी नहीं है।
पहले पीरियड और इस दौरान क्या करें से जुड़े जानकारी भरे आर्टिकल आप अपनी बच्ची के साथ इंटरनेट पर पढ़ सकती हैं। इस तरह से अगर उसके मन में कोई भी दुविधा होती है तो आप उसी वक़्त उसे दूर कर सकती हैं। पहले पीरियड के लिए पीरियड सर्वाइवल किट के साथ-साथ पैड जैसे कि स्टेफ़्री सेक्योर ड्राई या कॉटनी रेग्युलर, कुछ एक्स्ट्रा पेंटी और टिश्यू रखना आपकी बेटी के लिए बहुत मददगार साबित हो सकते हैं। इसमें से एक घर पर और एक उसके स्कूल बैग में रखें। किस तरह से पैड खुद पहना जाए और जरुआरत पड़ने पर कैसे बदला जाए, उसे सावधानी से पीरियड हाइजीन को ध्यान में रखते हुए किस तरह डिस्पोज़ किया जाए, यह सब उसे सीखाना भी बहुत ज़रूरी होता है।
क्या आपको इसके बारे में अपने बेटों से भी बात करनी चाहिए?
अपने बेटों और भाइयों से पीरियड के बारे में बात न करने से ही लंबे समय से पीरियड को एक हौवा माना जाता है। पीरियड आने का मतलब है लड़की से एक महिला बनना इसलिए इसे सामान्य मानना बहुत ज़रूरी है। अपने बेटे से पीरियड के बारे में बात करके आप उसे अभी के लिए ना सिर्फ़ एक हमदर्दी रखने वाला भाई या दोस्त बना रही हैं बल्कि भविष्य के लिए एक समझदार पार्टनर, पति और पिता को तैयार कर रही हैं।
जब स्कूल उन्हें मेंस्ट्रुएशन के पीछे का विज्ञान समझा रहा हो तब ज़रूरी है कि आप भी उन्हें लड़कियों के प्रति उनके पीरियड के समय उदार, सहनशील, सतर्क और मददगार बनना सीखाएँ।
क्या पिता को भी इस बातचीत का हिस्सा बनाया जाए?
हाँ! ऐसे समय में एक पिता का किरदार भी अपने बच्चों के लिए बहुत मददगार साबित होता है। माँ ही की तरह पिता भी बच्चे के भावनात्मक विकास और अच्छे स्वास्थ के लिए जिम्मेदार होता है। जैसे माँ अपने अनुभव को आधार बनाकर बात करती है वैसे ही एक पिता भी पीरियड को सामान्य बनाने में उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब माँ अपनी बेटी को खुद के अनुभव बता कर उसे पहले पीरियड के लिए शारीरिक तौर पर तैयार कर रही हों तब पिता भी औरत और आदमी का भेद हटाकर पीरियड के समय को एकदम सामान्य बनाने में मदद कर सकते हैं।
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कुछ ज़रूरी बातें:
एक औसत माहवारी 28-32 दिनों में आती है, जिसमें उन दिनों की संख्या 5 से 7 होती है, जब एक लड़की से रक्त स्त्राव होता है। इसका मतलब है कि एक लड़की हर महीने 1 हफ़्ते के लिए रक्त स्त्राव करती है। जब पीरियड आना एक नियमित और सामान्य बात है, तो इस पर बात करने में पाबंदी क्यों होनी चाहिए?
पीरियड पर अपने बच्चों से बात करके हम एक अच्छा और सकारत्मक माहौल बनाते हैं जहाँ इसके बारे में बात करने में किसी को कोई शर्म ना हो। पीरियड पर बात करने से न सिर्फ आपके किशोर बच्चों में विश्वास बढ़ता है बल्कि इससे पीरियड के समय को सामान्य मानने में भी मदद मिलती है। अपने बच्चों को उनके शरीर के बारे में और ज़्यादा जानकारी देने से आगे चलकर वे अपने स्वास्थ्य से जुड़े कई सही फैसले ले पाते हैं।